राष्ट्रीय खेल दिवस पर विशेष, प्राइवेट शिक्षक पुष्कर दिनकर ने मल्लखम्ब खेल के जरिए बदली ग्रामीण बच्चों की जिंदगी
पामगढ़ :- मल्लखम्ब की नर्सरी बना कुटराबोड़ पामगढ़,,72 बच्चे सीख रहे हैं खेल का कौशल,, 8 वर्षों में 36 राष्ट्रीय मेडल, मल्लखंब: विलुप्त खेल विधा को मिली संजीवनी विलुप्त हो रहे प्राचीन खेल विधा को संजीवनी देकर जिले के बाल व किशोर प्रतिभाओं ने इतिहास रचा हैl पामगढ़ विकासखंड के कुटराबोड़ में मलखंब की नर्सरी में इस वर्ष 72 बच्चों को तराशा जा रहा है खेल के सीमित संसाधनों लेकिन असीमित उत्साह और अपने दृढ़ इच्छा शक्ति से मल्लखम्ब खेल की शुरुआत सत्र 2017-18 से ग्राम के उत्साही व मलखम्ब के उत्कृष्ट खिलाड़ी पुष्कर दिनकर के द्वारा अपने निजी खेल उपकरणों के साथ ग्राम के ही शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला परिसर में प्रधान पाठक से अनुमति लेकर ग्राम के कुल 15 बच्चों के साथ की गई थी आज इन 8 वर्षों में इन बच्चों के पास ढेरों उपलब्धियां हैं जिनमें राज्य स्तर के 102 मेडल और राष्ट्रीय स्तर पर 36 मेडल उपलब्धियां के रूप में दर्ज है।
पामगढ़ सेजस स्कूल में 28 बच्चों का एडमिशन
मुख्यमंत्री महतारी दुलार योजना के तहत कोच और बच्चों के मेहनत परिणाम और लगन को देखते हुए सेजस पामगढ़ में मल्लखम्ब के 28 होनहार खिलाड़ियों का एडमिशन जिला प्रशासन द्वारा कराया गया हैl जिससे बच्चे उत्कृष्ट और गुणवत्ता परक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.. जिला मल्लखम्ब एसोसिएशन जांजगीर चाम्पा के इन होनहर खिलाड़ियों को प्रदेश स्तर पर छत्तीसगढ़ ओलंपिक एसोसिएशन के बैनर कुमारी डिंपी सिंह और अखिलेश कुमार को सम्मानित किया जा चुका है शिक्षा दिनकर को जगदलपुर बस्तर में पंख खेल उपलब्धि पुरस्कार नामक आयोजन में 51000 की राशि से सम्मानित किया जा चुका है lवहीं छत्तीसगढ़ राज्य व खेल विभाग के द्वारा राज्य खेल अलंकरण पुरस्कार से मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और खेल मंत्री टंकराम वर्मा ने अखिलेश कुमार और डिम्पी सिंह को राज्य खेल अलंकरण से भी सम्मानित किया जा चुका है। जांजगीर-चांपा जिला के ब्लॉक पामगढ़ के समीपस्थ गांव कुटराबोड़ में भारत के प्राचीन खेल मल्लखम्ब खेल विद्या की विगत 8 सालों से प्राइवेट शिक्षक पुष्कर दिनकर के द्वारा निशुल्क संचालित की जा रही हैl वे जिला मल्लखम्ब एसोसिएशन जांजगीर-चांपा छत्तीसगढ़ के संस्थापक व हेड कोच हैं lहिंदी व संस्कृत में पी जी के साथ शिक्षा मेंएम एड हैं.. पुष्कर दिनकर वर्तमान में सहायक प्राध्यापक शिक्षा के रूप में कार्य कर रहे हैं l आप मल्लखम्ब के राष्ट्रीय स्तर के निर्णायक और कोच हैl आप 12 वर्षों से क्षेत्र के बच्चों को मल्लखम्ब सीखाने का काम कर रहे हैं।
आपके भगीरथ प्रयास और उपलब्धियां को देखते हुए खिलाड़ियों के उन्नत खेल प्रशिक्षण हेतु ग्राम कुटराबोड़ के मल्लखम्ब अखाड़ा परिसर में ही जिला प्रशासन द्वारा 56 लाख की लागत से इंडोर ट्रेनिंग सेंटर का निर्माण किया गया हैl कोच पुष्कर दिनकर बताते हैं इन वर्षों में व्यक्तिगत रूप से 10 लाख की राशि इन बच्चों के खेल प्रशिक्षण और खेल यात्रा में लगा चुके हैं।
उनकी लगन जीत इस हद तक है कि वह अपने खुद के परिवार और बच्चे को समय नहीं दे पाते है अब प्रशासन का सहयोग जैसा प्राप्त हुआ है, उसे उनके प्रति परिवार की सोच व सम्मान बढ़ा है आप खिलाड़ियों को परिसर में ही इंग्लिश स्पोकन की निशुल्क क्लास दिलवाते हैं उनका कहना है कि आगे चलकर इन बच्चों को कॉमनवेल्थ,एशियाड और इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लेना है इसलिए इन खिलाड़ियों को अग्रिम रूप से इंग्लिश स्पोकन की क्लास दी जा रही है पुष्कर दिनकर मल्लखम्ब के उत्कृष्ट खिलाड़ी कोच के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर के रेफरी भी हैं आपने दिल्ली में आयोजित मल्लखम्ब फेडरेशन आफ इंडिया के बैनर तले आयोजित राष्ट्रीय निर्णायक परीक्षा में ए ग्रेड से परीक्षा पास करते हुए ऑल ओवर सातवें स्थान हासिल किया था जिसके परिणाम स्वरुप नेशनल प्रतियोगिता गोवा, राष्ट्रीय शालेय प्रतियोगिता उज्जैन, खेलो इंडिया यूथ गेम तमिलनाडु, अखिल भारतीय विश्वविद्यालय प्रतियोगिता अलीगढ़ और भारतवर्ष के खेल मंत्रालय द्वारा आयोजित प्रथम बीच गेम्स दमन दीव जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों में निर्णायक की भूमिका अदा कर पामगढ़,जिला जांजगीर-चांपा, छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर चुके हैं।
खुद बनाते हैं लकड़ी से मलखंब मल्लिखम्ब प्रशिक्षण के शुरुआत के दिनों दिनों में महाराष्ट्र से मल्लखम्ब मंगाकर बच्चों को ट्रेनिंग देना आरंभ किया था लेकिन खेल उपकरणों की कमी और अभाव को देखते हुए कोच पुष्कर दिनकर ने स्वयं ही मल्लखम्ब बनाना स्टार्ट किया और आज स्वयं ही रेंदा, गळेन्दर मशीन और सहायक उपकरणों से मलखम्ब का निर्माण स्वयं ही करते हैं l
मल्लिखम्ब का इतिहास एवं विकास भारत की प्राचीन सभ्यता की सांस्कृतिक विरासत के रूप में मल्लखम्ब भारत की एक विशिष्ट खेल विधा है lजिसका एक वृहद इतिहास है मलखम्बके इतिहास की बात करें तो द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के समय के भी इस खेल के प्रमाण मिलते हैं वही कलयुग में 12वीं सदी के आसपास मल्लखंब का उदय माना जाता है “सोमेश्वर चालुक्य “लिखित मानसउल्लास ग्रंथ में भी मल्लखम्ब के सदृश्य चित्र देखने को मिलते हैं किंतु द्वापर युग व कलयुग का कोई भी प्रमाणिक अथवा प्रामाणिक ग्रंथ देखने को नहीं मिलता है जो उसे समय भारत में मल्लखम्ब की प्रचलन को प्रमाणित कर सकेl आधुनिक काल में इस खेल का उद्भव 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में माना जाता है जिसका कई प्रमाणिक ग्रन्थ में उल्लेख भी मिलता है. मल्लखम्ब के आविष्कार के बारे में प्रोफेसर मजूमदार द्वारा 1938 में लिखित एवं प्रकाशित व्यायाम कोष के तृतीय भाग में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया था तत्पश्चात श्री खाजगी बाल डॉक्टर आर सी हटाले श्री कब महाबल प्रोफेसर माणिक राव श्री महेश अटाले एवं श्री रत्नाकर पटवर्धन द्वारा लिखित पुस्तकों में इसका वर्णन मिलता है
विशेष उपलब्धि
नेशनल प्लेयर 72
स्कूल गेम्स 12
खेलो इंडिया यूथ गेम 15
फेडरेशन 38
ओलंपिक संघ 07
कोच पुष्कर दिनकर के सानिध्य में शासकीय पदों पर चयन
1. रामखेलावन इंडियन आर्मी
2. निखिल जांगड़े बीएसएफ
3. सीमा भारद्वाज छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल
4. मनोज पटेल इंडियन आर्मी
5. अभिषेक सूर्यवंशी छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल
6. दिनेश कश्यप सीआईएफ
7. प्रभात कुमार अतिथि,क्रीड़ा अधिकारी केरा नवीन महाविद्यालय
8. मणिशंकर साहू अतिथि क्रीड़ाधिकारी बेमेतरा
अन्य उपलब्धि
1. अखिलेश नारंग बीपीएड में गोल्ड मेडल
2. प्रभात कुमार अंपायर नेट क्वालिफाइड एचडी गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में अध्ययन
3. तुका सिंह यादव
4. कौशिल्या साहू
5. रामशीला साहू
उड़ीसा के झारसगुडा में मल्लखम्ब की ट्रेनिंग और कार्यक्रम दे चुके है वहीं वर्तमान छत्तीसगढ़ शासन में राजस्व एवं खेल मंत्री ने बलौदा बाजार कार्यशाला में स्थानीय नगर भवन में कोच पुष्कर दिनकर के खिलाड़ियों का प्रदर्शन देख चुके है वहीं स्वास्थ्य मंत्री जायसवाल जी ने पंद्रह अगस्त में खिलाड़ियों का प्रदर्शन देखकर कहा कि इस प्राचीन खेल को छत्तीसगढ़ के हर जिले में आरम्भ करने की बात कही l