छत्तीसगढ़रायपुर

राज्यपाल का जवाब मिले बिना विधेयकों पर विचार से इनकार: मुख्यमंत्री बोले- यह गवर्नर के अधिकार से बाहर,लेकिन जिद पर अड़ी हैं तो जवाब देंगे

राज्यपाल अनुसूईया उइके ने दो टूक कह दिया है कि जब तक उनके 10 सवालों का जवाब नहीं मिलता वे आरक्षण संशोधन विधेयकों पर विचार नहीं करेंगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि ऐसे सवाल गवर्नर के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। लेकिन अगर राज्यपाल जिद पर अड़ी हैं तो हम उसका जवाब भी भेज देंगे। मुख्यमंत्री ने कहा, प्रदेश के युवाओं के हित में उस कानून का लागू होना जरूरी है।

भेंट-मुलाकात के लिए कसडोल जाने से पहले रायपुर हेलीपैड पर पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से राज्यपाल के दिल्ली जाकर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात पर सवाल हुए। मुख्यमंत्री ने कहा, उन्होंने जिनसे भी मुलाकात की हो उसकी मुझे जानकारी नहीं है। लेकिन अब ये हैं कि उसे जल्दी हस्ताक्षर करके देना चाहिए। क्याेंकि छात्रों के भविष्य का सवाल है। बहुत सारी भर्तियां होनी हैं, उसमें वह लागू होना है। हाईकोर्ट का भी आदेश आ गया है। ऐसे में जब हम लोगों ने नया आरक्षण बिल लाकर विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया है तो उसे तत्काल हस्ताक्षर कर देना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा, इतने दिन में मैं समझता हूं सब क्लियर हो चुका होगा। यह उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है, लेकिन वे उसी पर अड़ी हुई हैं तो हम उसका जवाब भेज देंगे। भेजने में कितना देर लगता है, लेकिन वह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। जो चीज विधानसभा से पारित हो चुका है, उसमें विभाग थोड़ी न जवाब देगा। लेकिन अगर वे अपनी हठधर्मिता पर अड़ी हुई है और नियम से बाहर जाकर काम करना चाहती है तो हमें कोई तकलीफ नहीं है। प्रदेश के हित में बच्चों के भविष्य को देखते हुए हम किसी प्रकार का अड़ंगा नहीं होने देंगे। वह चाहती है कि उनकी जिद पूरी हो तो हम भिजवा देंगे।

भाजपा पर विधेयक रुकवाने का आरोप

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरक्षण विधेयक रुकवाने के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, महामहिम पहले तो इसके लिए तैयार थीं। उसी के कहने पर विशेष सत्र बुलाए। तब कहा था कि एक मिनट नहीं लगेंगे मुझे हस्ताक्षर करने में। अब पता नहीं किसका फोन आया या एकात्म परिसर (भाजपा कार्यालय का नाम) से पर्ची आई। उसके बाद से ही वह रुक गया। आज उसके रुके हुए 20 दिन हो गया। यह उचित तो है ही नहीं।

राज्यपाल ने विधेयकों पर क्या कहा था

राज्यपाल अनुसूईया उइके तीन दिन के दिल्ली दौरे से बुधवार रात वापस लौंटी। रायपुर हवाई अड्‌डे पर छत्तीसगढ़ के आरक्षण संशोधन विधेयकों के भविष्य पर उनसे सवाल हुआ। जवाब में राज्यपाल ने कहा, दिल्ली में प्रदेश की सारी गतिविधियों पर चर्चा की गई। ये विषय भी मैंने बताया। राज्यपाल ने कहा, अपने विधि सलाहकार की सलाह पर उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार को 10 प्रश्न भेजा है। सरकार की ओर से उसका जवाब आने के बाद उस पर विचार करूंगी।

राज्यपाल ने सरकार से यह पूछा है

  • क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण।
  • 1992 में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है।
  • उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है।
  • सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं।
  • आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे।
  • क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी मांगी है।
  • विधेयक के लिए विधि विभाग का सरकार को मिली सलाह की जानकारी मांगी गई है। राजभवन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था।
  • अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं।
  • सरकार ने आरक्षण का आधार अनुसूचित जाति और जनजाति के दावों को बताया है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 335 कहता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाये रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा। सरकार यह बताये कि इतना आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता पर क्या असर पड़ेगा इसका कहीं कोई सर्वे कराया गया है?

उच्च न्यायालय के आदेश से प्रदेश के आरक्षण खत्म है

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर को आये एक फैसले से छत्तीसगढ़ में आरक्षण देने के लिए बने कानून की संबंधित धाराओं को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया गया है। इसी के साथ प्रदेश की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण खत्म हो चुका है। इस स्थिति से बचने के लिए सरकार ने एक-दो दिसम्बर को विधानसभा का सत्र बुलाया। दो दिसम्बर को नये आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर राज्यपाल को हस्ताक्षर के लिए भेजा गया। इस विधेयक में अनुसूचित जाति के लिए 13%, अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!
× Click to send News