रासेयो ईकाई सुखरीकला के स्वयंसेवकों ने सीखी बांस हस्तशिल्प कला

सूपा, पर्रा, टोकनी और झउहा बनाना सीखा — ग्राम भदरापाली की बांस कला बनी प्रेरणा
जांजगीर चांपा। राष्ट्रीय सेवा योजना (रासेयो) ईकाई सुखरीकला के स्वयंसेवकों ने ग्राम भदरापाली (बहेराडीह) पहुंचकर बांस हस्तशिल्प कला का प्रशिक्षण लिया। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम अधिकारी आर.के. राठौर एवं सहायक कार्यक्रम अधिकारी एम.आर. राज के मार्गदर्शन में तथा संस्था प्रमुख प्राचार्य बी.एल. चौधरी के निर्देशन में आयोजित किया गया।
भदरापाली ग्राम के बंसोर जाति के कारीगरों ने स्वयंसेवकों को पारंपरिक बांस कला सिखाई, जिसके तहत झांपी, सूपा, टोकरी, पर्रा, टुकनी, झउहा, छिपी, मछली पकड़ने की जाल, ट्री गार्ड, फूलदान, पेनदान, चटाई, हाथ पंखा, सोफा, कुर्सी, झूला फर्नीचर आदि कई उपयोगी और सजावटी वस्तुएं बनाना सिखाया गया।

स्वयंसेवक आर्यन टंडन, रघुबीर सिंह कंवर, गौकरण, जागृति मन्नेवार, कंचन, किरण, कृति, प्राची, नम्रता बरेठ, अंजलि, दुर्गेश्वरी कश्यप, निशा बरेठ सहित अन्य छात्र-छात्राओं ने बांस शिल्प की बारीकियों को समझा और अपने हाथों से विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया।
कार्यक्रम में विद्यालय की व्याख्याता श्रीमती मौसमी अवस्थी एवं श्रीमती अनीता साहू ने बालिका स्वयंसेविकाओं का मार्गदर्शन करते हुए बांस की टोकरी बनाने में सहयोग प्रदान किया। इस अवसर पर एल.एन. सोनकर सहित विद्यालय के अन्य शिक्षकों और स्वयंसेवकों का सक्रिय योगदान रहा।
ज्ञात रहे कि ग्राम भदरापाली के बंसोर समुदाय के लोगों के लिए बांस हस्तशिल्प कला ही आजीविका का मुख्य साधन है। वे स्थानीय किसानों से कच्चा बांस खरीदकर उपयोगी व सजावटी वस्तुएं बनाते हैं और उन्हें बाजार में बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं। यह कला ग्रामीण रोजगार एवं आत्मनिर्भरता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है।




